निमाड़ में गणगौर पर्व आस्था, भक्ति और सेवा की मिसाल है। जिस तरह उत्तर भारत में छठ पर्व के लिए लोग घर लौटते हैं, ठीक उसी तरह निमाड़ में गणगौर पर घर-गांव में धार्मिक ऊर्जा और उल्लास का माहौल छा जाता है। इस दौरान खासकर जवारे का पूजन होता है। उन्हीं जवारों
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लगभग हर गांव और नगर में 30% से अधिक परिवार रथ सजाते हैं। कई बार दो-तीन परिवार मिलकर सामूहिक आयोजन करते हैं, जिसमें पूजन, सहभोज और परंपरागत ‘पेरावणी’ जैसी रस्में भी निभाई जाती हैं।
गणगौर पर धनियर राजा-रणुबाई की आराधना होती है।
बेटी की शादी इतना खर्च कर देते हैं लोग
एक बेटी की शादी पर जितना खर्च होता है, उतना खर्च एक साधारण परिवार गणगौर के आयोजन में कर देता है। एक सामान्य परिवार और छोटे स्तर पर आयोजन के लिए भी भोजन, पूजन और पेरावणी मिलाकर दो लाख रूपए तक खर्च होते है। अधिकांश सामूहिक आयोजन मन्नत के रूप में होते है। कोई संतान की चाहत में तो कोई चुनाव जीत जाने या अच्छी फसल की पैदावार के लिए मन्नत लेता है।
4 बेटियों के बाद बेटे का जन्म, गांव में सहभोज दिया
खंडवा शहर से 5 किलोमीटर की दूर बड़गांव भीला गांव में इस साल रणजीतसिंह सिसौदिया ने रथ बौड़ाए है। उन्होंने पूरे गांव को सहभोज दिया। उनके घर शादी कार्यक्रम की तरह सभी रिश्तेदार जुटे। पेरावणी तक की रस्म की गई। उन्होंने बताया कि उनकी चार बेटियां है, बेटे को लेकर मन्नत मांगी थी, जो पूरी होने पर यह कार्यक्रम किया। पेशे से किसान रणजीतसिंह ने कार्यक्रम पर करीब डेढ़ लाख रूपए खर्च किए है।
पत्तल उठाने, पानी पिलाने के लिए लगती है बोली
खंडवा शहर में जबरण कॉलोनी, बेड़ी, बांबे बाजार और गुरुवा समाज की ओर से आयोजित भंडारों में भी सेवा भावना की मिसाल देखने को मिलती है। यहां पत्तल उठाने, पानी पिलाने जैसी सेवाओं के लिए भी बोली लगाई जाती है। खास बात यह है कि भंडारे के लिए सामग्री की बुकिंग एक साल पहले ही हो जाती है। इच्छुक दानदाता व्यक्ति आटा, दाल, शक्कर, तेल समेत अनाज के लिए बोली लगा देते है।
इस साल पत्तल उठाने के लिए 5100 और 6100 रुपए, जबकि पानी पिलाने के लिए 2500 रुपए की बोली लगाई गई। आयोजकों के अनुसार, भंडारे के लिए आटा, दाल, शक्कर जैसी सामग्री की बुकिंग एक साल पहले ही हो जाती है।
13 साल बाद भंडारा कराने का अवसर मिला
खरगोन के भीकनगांव गांव में मां त्रिवेणी मित्र मंडल को 13 साल बाद भंडारा कराने का सौभाग्य मिला। इस समिति ने करीब 40,000 श्रद्धालुओं को भोजन कराया। अब 2026 में यह मौका झिरन्या रोड के एक परिवार को मिलेगा, जिसने 16 साल पहले भी रथ निकाला था।
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