यदि आप भी शहर में हो रहे ध्वनि प्रदूषण (विशेषकर भीड़-भाड़वाले स्थानों पर से परेशान हैं। हॉर्न का शोर, तेज आवाज में बजते इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आपके कानों को तकलीफ देते हैं, तो ये खबर आपके लिए महत्वपूर्ण है। ग्वालियर शहर में ध्वनि प्रदूषण की निगरानी के लि
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इन आंकड़ों पर कोई गौर कर रहा है। जिन क्षेत्रों में उपकरण लगाए गए, वहां किस समय अवधिः में ज्यादा प्रदूषण रहता है, प्रदूषण का स्तर कब कग रहता है? इसका रिकॉर्ड लोकल स्तर पर संकलित नहीं किया जाता। यानी ये चार उपकरण महज शोपीस बनकर रह गए हैं। कहने के लिए तो इन्हें लगाने का मुख्य उद्देश्य ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण करना था, लेकिन फिलहाल ये उपकरण स्वयं हो अनदेखी का शिकार हो रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर ग्वालियरवासियों के कान की नसें शोर से कमजोर हो रही हैं। पुछिए भास्कर की खास रिपोर्ट……..
इन चार स्थानों पर लगे हैं उपकरण
- महाराज बाड़ा नगर निगम मार्केट (गजराराजा स्कूल के पास): कॉमर्शियल क्षेत्र
- शासकीय अस्पताल,डीडी नगर: आवासीय क्षेत्र
- जीवाजी विश्वविद्यालय: शांति क्षेत्र
- औद्योगिक क्षेत्र (फैक्ट्री)
एक्शन प्लान बनाने का काम सरकार का
उपकरण में दर्ज ध्वनि प्रदूषण के आंकड़े बोर्ड के माध्यम से सरकार को भेजे जाते हैं। सरकार उसके हिसाब से एक्शन प्लान बनाती है, ताकि प्रदूषण कम किया जा सके। इस पूरे प्रोजेक्ट की निगरानी भोपाल में स्थापित किए गए सर्विलेस सेंटर से की जाती है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड उद्योगों से हो रहे प्रदूषण पर कार्रवाई करता है। आरआर एस सेंगर
कानून में दिए गए प्रावधान के अनुसार शिकायत मिलने पर या फिर स्वविवेक से क्षेत्र का राजस्व अधिकारी और पुलिस संयुक्त रूप से कार्रवाई के लिए अधिकृत हैं। इनमें से पुलिस को जब्ती के अधिकार हैं। –टीएन सिंह, एडीएम
भास्कर एक्सपर्ट
डॉ. अमित रघुवंशी
ऐसे माहौल में कानों को नुकसान का रहता है डर, ऐसे में बचाव करें
ऐसे वातावरण, जिसमें ध्वनि प्रदूषण का स्तर निधर्धारित मानक से ज्यादा है। वहां रहने से शुरुआत में तो सुनने में तकलीफ होती है। लंबे समय तक ऐसी जगह रहते हैं तो कान की नीं कमजोर हो जाती है। इससे सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। चिड़चिड़ापन, गुस्सा आना, नींद नहीं आन ये भी इसके दुध्यभावों में शामिल हैं। इनसे बचाव का सही तरीका उस स्थान पर कानों को ढंककर रखना है। कोशिश करें कि ऐसे वातावरण में जाने से बचें। यदि जाएं तो यथासंभव वहां से समय रहते निकल लें या बीच-बीच में किसी शांत जगह चले जाएं। ताकि कानों को नियमित अंतराल में आराम मिल सके।
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