मप्र में अब बड़े प्रोजेक्ट में राशि की मंजूरी अनावश्यक लेट नहीं होगी। वित्त ने विभागीय सचिवों के अधिकार बढ़ा दिए हैं, वे अब 50 करोड़ रुपए तक की लागत वाले प्रोजेक्ट को मंजूरी दे सकेंगे। इसमें सिर्फ विभागीय मंत्री का अनुमोदन लगेगा।
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इस वित्तीय अधिकार के बढ़ने से काम में भी तेजी आएगी। पहले विभागीय सचिवों के पास 20 करोड़ तक के ही प्रोजेक्ट की मंजूरी के अधिकार थे। उदाहरण के लिए यदि मेडिकल कॉलेज के किसी प्रोजेक्ट की लागत 20 से 21 करोड़ हो जाए तो उन्हें मुख्य सचिव तक जाना पड़ता था। अब ऐसा नहीं करना पड़ेगा।
वित्त विभाग ने स्टेंडिंग फाइनेंस कमेटी (स्थायी वित्त समिति या एसएफसी), एक्सपेंडिचर फाइनेंस कमेटी (वित्तीय व्यय समिति या ईएफसी) और प्रोजेक्ट स्क्रीनिंग कमेटी (परियोजना परीक्षण समिति या पीएससी) की नए सिरे से व्यवस्था की है। इसी में सचिव के अधिकार बढ़े।
एसएफसी में सचिव के पास 50 करोड़ तक के प्रोजेक्ट मंजूरी के अधिकार रहेंगे, जिसमें विभागीय मंत्री का अनुमोदन होगा। ईएफसी में वित्त सचिव के पास 50 से 200 करोड़ रुपए तक प्रोजेक्ट का अधिकार होगा, जिसमें विभागीय मंत्री के अनुमोदन के साथ वित्तमंत्री की भी रजामंदी लगेगी।
इसी तरह पीएससी में 200 करोड़ से अधिक के काम होंगे, जिसमें नियमित नियुक्तियां या संविदा पर लोग रखने होंगे तो मुख्य सचिव इस पर निर्णय लेंगे। साथ ही कैबिनेट की अनुमति जरूरी होगी। पहले ईएफसी का दायरा 20 से 100 करोड़ तक था। पीएससी के पास 100 करोड़ से ऊपर के प्रोजेक्ट जाते थे। अब सभी की वित्तीय ताकत बढ़ा दी गई है। वित्त विभाग ने इस नई व्यवस्था को बुधवार को आदेश जारी कर लागू कर दिया है।
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