सिर्फ 32 मेडल के साथ 10वें स्थान पर रहा मप्र, अकादमियों का फोकस उन खेलों पर जो ओलिंपिक में नहीं
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ओलिंपिक में नहीं दिखते मध्यप्रदेश के खिलाड़ी
खेलों की बात करें तो मप्र की असली ताकत यूथ और जूनियर खिलाड़ी ही हैं। क्योंकि यहां अकादमियों का पूरा फोकस इन्हीं पर है। यहां 12-18 साल के बच्चे रखे जाते हैं। लेकिन, मई में बिहार में हुए खेलो इंडिया यूथ गेम्स में मप्र की ये ताकत चारों खाने चित नजर आई। मप्र ने 18 खेलों में 176 खिलाड़ी उतारे थे, जो महज 32 मेडल जीतकर 10वें स्थान पर रहे।
इसमें 10 गोल्ड थे। पिछले यूथ गेम्स के मुकाबले 4 स्थान का सुधार जरूर हुआ है। लेकिन, परेशान करने वाली बात यह है कि दस में से आठ गोल्ड मप्र ने मलखंभ और थांगटा जैसे खेलों में जीते हैं, जो ओलिंपिक में शामिल नहीं हैं। हमारे अधिकतर मेडल ही उन खेलों में हैं, जो ओलिंपिक और एशियन गेम्स में शामिल नहीं है।
यही वजह है कि जब ओलिंपिक और एशियन गेम्स के लिए भारतीय टीम चुनी जाती है तो मप्र के खिलाड़ी इक्का-दुक्का ही दिखते हैं। वॉलीबॉल, फुटबॉल, बास्केटबॉल, हैंडबॉल जैसे कई बड़े खेलों में तो मप्र क्वालिफाई ही नहीं कर पाता।
मप्र के 10 में से 8 गोल्ड मलखंभ और थांगटा में, जो ओलिंपिक में नहीं… महाराष्ट्र-हरियाणा के मेडल ओलिंपिक वाले खेलों में ज्यादा
दूसरे स्थान पर रहे हरियाणा के गोल्ड : 39 रेसलिंग 8
बॉक्सिंग 8
फेसिंग 7
एथलेटिक्स 6
जूडो 2
स्विमिंग 2
वेटलिफ्टिंग 2
हॉकी-टेनिस 1-1 (ये सभी खेल ओलिंपिक में शामिल) Áराजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, उप्र और दिल्ली ने भी ओलिंपिक खेलों में ही गोल्ड जीते।
सबसे ज्यादा निराश किया शूटिंग ने… खेलो इंडिया यूथ गेम्स में सबसे ज्यादा निराश करने वाला खेल है शूटिंग। मप्र का पिछले 15 साल में सबसे ज्यादा फोकस इसी खेल पर रहा है। फिर भी शूटिंग की तीनों विधाओं की कैटेगरी में मप्र सिर्फ ट्रैप एंड स्कीट में गोल्ड जीत पाया। राइफल और पिस्टल में जीरो रहे। मप्र शूटिंग अकादमी में करीब 107 शूटर सालभर रहकर ट्रेनिंग लेते हैं। मप्र की सभी 18 अकादमियों में सबसे महंगी अकादमी भी शूटिंग ही है। इसमें रोजाना एक खिलाड़ी लगभग 5000 रुपए खर्च आता है।
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