पानी निगल रहा आपके फोन का डेटा… वैज्ञानिकों का दावा डिजिटल युग में जल्दी पड़ेगा सूखा!

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डेटा के कारण पड़ेगा सूखा Image Credit source: Getty Images

ब्रिटेन इस समय गंभीर सूखे की समस्या से जूझ रहा है. ऐसे हालात में पर्यावरण अधिकारियों ने लोगों से अपील की है कि वे न केवल घर और बाहर पानी की बचत करें, बल्कि डिजिटल जीवनशैली में भी जिम्मेदारी दिखाएं. अधिकारियों का कहना है कि लोग अपने ईमेल इनबॉक्स से अनावश्यक मेल और पुरानी तस्वीरें हटाएं, क्योंकि इनको सुरक्षित रखने वाले डाटा सेंटरों को ठंडा करने के लिए भारी मात्रा में पानी की खपत होती है. जिसका इस्तेमाल हम लोग पानी

नेशनल ड्रॉट ग्रुप ने लोगों को चेतावनी दी है कि सूखे की हालत ऐसी बन चुकी है कि मामला राष्ट्रीय स्तर पर चिंता का विषय बन चुके हैं. इस मुद्दे को लेकर पर्यावरण एजेंसी की वाटर डायरेक्टर हेलेन वेकहैम ने कहा, हम सभी से अनुरोध करते हैं कि छोटे-छोटे कदम उठाएं, जिससे हम पानी को ज्यादा से ज्यादा बचा सके. इन आदतों में नल बंद करना, लीक ठीक कराना या फिर पुराने ईमेल मिटाना. ये साधारण काम भले ही छोटे-छोटे हो लेकिन अगर सामूहिक रूप से किया जाए तो बड़ा फर्क पैदा कर सकते हैं और नदियों तथा वन्यजीवों को बचाने में मददगार साबित होंगे.

देश में पड़ा भंयकर सूखा?

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटेन के कई हिस्सों में औपचारिक रूप से सूखे की घोषणा की जा चुकी है. इनमें यॉर्कशायर, कंब्रिया, लंकाशायर, ग्रेटर मैनचेस्टर, मर्सीसाइड, चेशायर, ईस्ट मिडलैंड्स और वेस्ट मिडलैंड्स जैसी जगहे शामिल हैं. सामान्यतः इस समय तक जलाशय 80 प्रतिशत से अधिक भरे रहते हैं, लेकिन यहां अब आलम ऐसा है कि इसका स्तर घटकर लगभग 67.7 प्रतिशत रह गया है.

डाटा सेंटर पानी और ऊर्जा दोनों के बड़े उपभोक्ता हैं. ये चौबीसों घंटे चलने वाले सर्वरों को ठंडा करने के लिए पानी पर निर्भर रहते हैं. अनुमान है कि पुराने कूलिंग सिस्टम वाले एक छोटे डाटा सेंटर में भी सालाना 2.5 करोड़ लीटर से अधिक पानी खर्च हो सकता है. 2021 में अमेरिका के ओरेगन राज्य में गूगल के एक डाटा सेंटर ने लगभग 355 मिलियन गैलन पानी का इस्तेमाल किया था. यह मात्रा इतनी थी कि इससे करीब 538 ओलंपिक आकार के स्विमिंग पूल भरे जा सकते थे.

डिजिटल दुनिया क्यों है लोगों का खतरा

डाटा सेंटर केवल पानी ही नहीं, बल्कि ऊर्जा भी भारी मात्रा में लेते हैं. बिजली उत्पादन के लिए जीवाश्म ईंधन और परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में पानी का उपयोग टर्बाइन चलाने और रिएक्टर ठंडा करने में किया जाता है. इस तरह डाटा स्टोरेज और इंटरनेट सेवाएँ अप्रत्यक्ष रूप से भी जल संसाधनों पर दबाव बढ़ाती हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि AI तकनीक के विस्तार के साथ आने वाले वर्षों में डाटा सेंटरों की संख्या और उनका आकार और भी बढ़ेगा. इसका सीधा असर पानी की खपत पर पड़ेगा.

यही कारण है कि एजेंसी ने लोगों को डिजिटल दुनिया में भी सतर्क रहने की सलाह दी है. साथ ही उन्होंने पानी बचाने के कुछ आसान तरीके सुझाए हैं. जैसे वर्षा का पानी इकट्ठा करना, किचन का बचा पानी पौधों में डालना, बाथरूम की लीक तुरंत ठीक कराना और नहाने का समय कम करना. मूल बात यह है कि हर छोटा कदम मायने रखता है. चाहे घर में नल बंद करना हो या मोबाइल से अनावश्यक फाइलें हटाना, ये सब मिलकर पानी की बड़ी बचत कर सकते हैं. सूखे के इस दौर में पानी को समझदारी से इस्तेमाल करना केवल सरकार की नहीं, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है.

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